कामू बैगा के नेतृत्व में आदिवासी युवाओं द्वारा रेंगाखार वनांचल में आदिवासी चिंतन शिविर का आयोजन किया गया ।
बीते गुरुवार को रेंगाखार वनांचल क्षेत्र के ग्राम आमाखोडरा में आदिवासी युवाओं को समाज के प्रति जागरूक करने एवं आदिवासी समाज में हो रहे शोषण अत्याचार और उससे जुड़ी समस्याओं से किस प्रकार निपटा जा सकता है, साथ ही आदिवासी युवाओं को सामाजिक कार्यों के प्रति प्रेरित करने के लिए एक दिवसीय युवा आदिवासी चिंतन शिविर के आयोजन का मुख्य उद्देश्य था । आपको बता दें कि इस कार्यक्रम में रेंगाखार क्षेत्र के , आदिवासी युवा, महिला, पुरुष सभी वर्ग के सैकड़ों साथी शामिल हुए । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में आदिवासी सत्ता अख़बार के संपादक श्री के. आर.शाह जी रहे एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता रेंगाखार शर्किल अध्यक्ष ऐमन मेरावी द्वारा किया गया ।शांतनु मरकाम युवराज ठाकुर भिलाई से उपस्थित रहे। कवर्धा से आए कोमल मरकाम, उत्तम नेताम, सुशील मेरावी गोलू गोंडवाना व क्षेत्र के युवा साथी , मोहित मेरावी (आमाखोडरा),विष्णु नेताम (रेंगाखार) दिलीप मेरावी (आमाखोडरा) अजय मेरावी (बरेंडा ) प्रहलाद धुर्वे युवा नेता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ रानी दुर्गावती के तैलचित्र में माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया । वहीं मुख्य अतिथि के आर शाह ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि, आदिवासी समाज के पढ़े लिखे युवाओं को इतिहास को जानने की आवश्यकता है , आदिवासी युवा अन्य जातियों के मुकाबले कम पढ़ने वालों के श्रेणी में आते हैं, कुछ व्यक्तियों को छोड़ शिक्षा का स्तर नही के समान है, उन्होंने कहा कि कालेज कर डिग्री हासिल कर लेने को बस आज की युवा पीढ़ी साक्षर होने को शिक्षा समझ बैठे हैं और कोई भी ब्रेनवाश करने वाले लोग युवाओं को कुछ भी ग़लत तथ्य समझाते है, उसे ही सच समझ बैठते हैं उसका कारण तर्कसील नही होना है। उन्होंने कहा कि,जो युवा इतिहास जानता है, वही युवा इतिहास बनाता है। कार्यक्रम आयोजक आदिवासी समाज के युवा नेता कामू बैगा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा "आदिवासी युवाओं को समाज को संगठित करने के लिए , हमे जातिवाद और धर्मवाद के आडम्बर से हट कर काम करने की जरूरत है, उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को कई जातियों, उप जातियों में पहले से ही बांट कर रखा गया है, और अभी वर्तमान समय में जातियों के अलावा आदिवासी समाज कई संगठनों में बटा हुआ है, परंतु कोई भी संगठन समाज को संगठित करने के लिए जमीनी स्तर में कुछ भी कार्य नहीं कर रहा है, हकीक़त से कोसो दूर हैं, आदिवासी युवाओं को संगठित होकर कार्य करने की आवश्कता है, क्योंकि अब समाज में अगर कोई परिवर्तन ला सकता है तो वह युवा लोग ही कर सकते हैं।